प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की हर योजना, हर कार्यक्रम का केंद्र बिंदु गरीब, कमजोर, पिछड़ा तबका है। "हर जरूरतमंद की आँखों में खुशी, जिंदगी में खुशहाली" मोदी सरकार का संकल्प है और इसी संकल्प का मजबूत हिस्सा है ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा देने की पहल। पिछड़े वर्गों के अधिकारों को व्यापक संवैधानिक दर्जा देने से बड़ी संख्या में मुस्लिम समाज भी सामाजिक न्याय के सफर का हिस्सा बनेगा। पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने वाले कानून के बनते ही मुस्लिम समाज के कहार, केवट-मल्लाह, कुम्हार, कुंजड़ा, गुज्जर, गद्दी-घोसी, कुरैशी, जोगी, माली, तेली, दरजी, नट, फकीर, बंजारा, बढ़ई, भुर्जी, भटियारा, चुड़िहार, मोमिन-जुलाहा, मुस्लिम कायस्थ, मंसूरी, धुनिया, बेहना, रंगरेज, लोहार, हलवाई, हज्जाम, लाल बेगी, धोबी, मेव, भिश्ती, मदारी, मोची, राज-मिस्त्री, कलवार आदि वर्ग के लोग सशक्तिकरण के विभिन कार्यक्रमों-योजनाओं का लाभ उठाने के संवैधानिक हक़दार हो जायेंगे।
पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देना आजादी के 70 साल बाद किसी सरकार द्वारा समाज के गरीब, दूर-दराज के क्षेत्रों में जीवन यापन कर रहे पिछड़ा समाज के हितों में लिया गया एक ऐतिहासिक, दूरदर्शी और अभूतपूर्व निर्णय है। भाजपा की केंद्र सरकार द्वारा समाज के कमजोर वर्गों की न्याय देने के लिए लम्बे समय से अपेक्षित मांग को पूरा किया गया है। इस ऐतिहासिक फैसले से समाज के सभी पिछड़े वर्ग के लोगों को न्याय मिलेगा। हाल ही में संपन्न बजट सत्र के दौरान लोकसभा में पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने वाला बिल पास हो गया पर राज्यसभा में कांग्रेस, सपा, बसपा, तृणमूल कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी, जनता दल (यू) सहित कई दलों ने इसे पास नहीं होने दिया, जिसके चलते पिछड़े वर्गों के अधिकारों की रक्षा करने वाला एक बड़ा कानून लटक गया है।
देश में लम्बे समय तक शासन में रहने के बावजूद कांग्रेस ने पिछड़ा वर्ग के हितों के लिए कुछ नहीं किया। आजादी के बाद काका कालेलकर कमीशन (1950) और मंडल आयोग (1979) की रिपोर्ट के बावजूद भी तत्कालीन कांग्रेस की सरकारों द्वारा इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया। मौजूदा पिछड़ा वर्ग आयोग एक साधारण क़ानूनी निकाय है, जिसका कार्य सरकार को जातियों/समुदायों की सूचियों में शामिल करने अथवा निकालने के संबंध में सलाह देना है। नेशनल कमीशन फॉर सोशल एंड एजुकेशनली बैकवर्ड क्लासेज (एनएसईबीसी) को सांविधिक निकाय के रूप में एनसीएससी और एनसीएसटी के बराबर का दर्जा मिल जायेगा। यह आयोग पिछड़ा वर्ग के संरक्षण, कल्याण और विकास तथा उन्नति से संबंधित अन्य कार्यों का भी निर्वहन करेगा। यह आयोग संविधान के अंतर्गत आने वाले अनुच्छेद 16-4 एवं 15-4 के निहित अधिकारों का प्रयोग करते हुए सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों को सशक्त करते हुए उनको न्याय देगा। इस अहम निर्णय को लागू करने के संबंध में ओबीसी संसदीय समिति की सिफारिश भी आई और सभी दलों के सांसदों ने व्यक्तिगत रूप से प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात करके इस संबंध में संविधान में संशोधन करने का आग्रह किया था। इस दिशा में एनडीए सरकार ने ठोस कदम उठाते हुए इसे लोकसभा में 10 अप्रैल, 2017 को सर्वसम्मति से पारित भी करा लिया। लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश के पिछड़े तबके के लोगों को सशक्त बनाने और उन्हें न्यायिक रूप से और मजबूत करने की दिशा में उठाए गए इस कदम को राज्यसभा में विरोध करके रोक दिया गया है।
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने से जुड़े संविधान 123वें संशोधन विधेयक को राज्यसभा में विपक्ष के विरोध के चलते 11 अप्रैल को प्रवर समिति के पास भेज दिया गया। कांग्रेस, सपा, बसपा एवं अन्य विपक्षी दलों का यह रुख बेहद निराशाजनक एवं दुर्भाग्यपूर्ण है। कांग्रेस एवं कुछ अन्य विपक्षी दलों ने जिस तरह से राज्यसभा में इसका विरोध किया है, पिछड़े वर्ग को लेकर इन दलों की मनोस्थिति लोगों के सामने आ गई है।
हमारी सरकार ओबीसी आयोग संविधान संशोधन विधेयक को पारित कराने को लेकर प्रतिबद्ध है। पिछड़े वर्गों के अधिकारों को संवैधानिक दर्जा देने के प्रति भाजपा की सक्रियता और गंभीरता इस बात से स्पष्ट होती है कि भाजपा ने ओडिशा में 15-16 अप्रैल, 2017 को संपन्न राष्ट्रीय कार्यकारिणी में इस विषय पर अलग से प्रस्ताव पारित किया।
देशभर में ओबीसी समुदाय को संवैधानिक तौर पर मिले अधिकारों की जागरुकता को लेकर भाजपा की ओर से 100 सभाएं की जाएँगी। इन सभाओं के जरिए ओबीसी के दायरे में वाले मुस्लिम समेत अल्पसंख्यक समुदाय को उनके संवैधानिक अधिकारों के प्रति जागरुक किया जाएगा। केंद्र की प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार की ओर से ओबीसी के लिए चलायी जाने वाली योजनाओं के बारे में जानकारी भी दी जाएगी।देश में मुसलमानों की एक बड़ी संख्या ओबीसी के दायरे में आती है लेकिन जागरुकता नहीं होने की वजह से वो अपने अधिकारों से वंचित रह जाते हैं। मौजूदा समय में कुछ ही जातियां इसका लाभ उठा रही हैं। ऐसे में उन्हें संविधानिक अधिकारों से रुबरु कराया जाएगा।