विपक्ष ने एक बार फिर देश को निराश किया है। छह महीने से संसद का सत्र बुलाने और कोरोना संकट सहित तमाम विषयों पर विस्तृत चर्चा की रट लगाने के बाद जब संसद का सत्र वास्तव में चल रहा है तो विपक्ष ने एक दिन भी कार्यवाही में शामिल होने की दिलचस्पी नहीं दिखाई है। यही नहीं, विपक्षी नेताओं ने बातचीत में यह साफ कर दिया है कि उनकी ओर से यह पूरा सत्र वॉशआउट यानी धुल चुका है। तमाम मीडिया इस पर रिपोर्ट भी कर चुका है। कुछ विपक्षी दलों द्वारा ऐसी गैर जिम्मैदाराना राजनीति की चौधराहट में देश का सबसे पुराना दल, कांग्रेस, सबसे आगे है। मई की शुरूआत में लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने माननीय राष्ट्रपति जी से मांग की थी कि फौरन संसद का विशेष सत्र आहूत करें। कांग्रेस के नेता ने कहा था कि सत्र बेहद आवश्यक है क्योंकि सभी राज्यों से आने वाले तमाम सांसद अपने क्षेत्र में कोरोना संकट को लेकर उत्पन्न स्थिति के बारे में कुछ न कुछ कहना चाहते हैं। और लोगों को कोरोना संकट से निजात दिलाने के लिए समाधान चाहते हैं। कांग्रेस के "नए मित्र" शिवसेना के सांसद और नेता संजय राउत ने भी विशेष सत्र की मांग दोहराई थी। जब सरकार की ओर से यह आग्रह किया गया कि पूरा सरकारी तंत्र, कोरोना की दूसरी लहर को काबू करने में जुटा है और संसद सत्र में लोगों का जुटना खतरे से खाली नहीं है तो विपक्ष ने कई दिनों तक इस पर तीखी बयानबाजी भी की थी।
संसद का मॉनसून सत्र चल रहा है। सत्र का आगाज हुए एक सप्ताह से ज्यादा का समय हो चुका है। जो विपक्ष कोरोना की दूसरी लहर में अप्रत्याशित संकटों के बीच सत्र के लिए माननीय राष्ट्रपति जी से गुहार लगा रहा था उसने अब तक एक दिन भी कामकाज चलने नहीं दिया है। यही नहीं, सत्र के पहले दिन जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने विपक्षी दलों के संसद के नेताओं को कोरोना से चल रही लडाई और सरकार के उपायों, भविष्य की तैयारियों का ब्योरा देने के लिए एक विशेष बैठक का आमंत्रण दिया तो कांग्रेस सहित कुछ नेताओं ने भवें चढाकर कहा था कि जब सत्र शुरू हो गया है तो अलग से बैठक क्यों? जो कहना है सरकार को संसद के पटल पर ही कहना चाहिए।
(1)इन बयानों से साबित हो गया था कि विपक्ष, संसद सत्र को लेकर कितना इच्छुक और गंभीर है। जबकि कोरोना पर ऑल पार्टी मीटिंग का सुझाव भी कांग्रेस की तरफ से आया था। यह गंभीरता काफूर हो गई जब पहले सप्ताह में ही "विद्वानों का सदन" कहे जाने वाले राज्य सभा में एक वरिष्ठ मंत्री के हाथ से छीनकर कागज फाड़े गए। लोक सभा में तो स्थिति यहां तक पहुंच गई कि विपक्षी सदस्य, माननीय अध्यक्ष पर कागज के टुकड़े फेंकने लगे और सदन ही नहीं गैलरी में बैठे पत्रकारों की ओर भी कागज फाड़ कर उछाले गए। सदन की कार्रवाई का ब्योरा नोट करने वाले अधिकारियों को भी प्रताडित करने से नहीं चुके।
इन तमाम नाटकीय स्थितियों के लिए विपक्ष कथित पेगासस जासूसी कांड का सहारा ले रहा है। गौरतलब है कि इस विवाद पर सरकार के संबंधित मंत्री दोनों सदनों में बयान दे चुके हैं। मुमकिन है विपक्ष उनके बयान से संतुष्ट न हुआ हो। अगर ऐसा था तो सबसे उत्तम फोरम राज्य सभा है जहां नियमों के मुताबिक किसी भी मंत्री के बयान पर स्पष्टीकरण पूछने का प्रावधान है। लेकिन वहां तो विपक्ष का फोकस मंत्री के बयान को हंगामें में दबाने और फिर उनके हाथ से कागज छीनने में था।
अब तक विपक्ष के रवैये से कुछ अहम सवाल खडे होते हैं। क्या कोरोना पर संसद का इमरजेंसी सत्र बुलाना सिर्फ सरकार का ध्यान भटकाने का पैंतरा था? अगर मंशा चर्चा की थी तो लगभग डेढ़ हफ्ते से विपक्ष चर्चा के अलावा बाकी सब कुछ क्यों कर रहा है? या कोरोना की दूसरी लहर काबू होने के बाद केरल, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में कोरोना संक्रमण के मामलें लगातार बढ़ते देख विपक्ष कोरोना की बहस के उल्टा पडने की आशंका से यू़.टर्न ले रहा है? या विपक्ष को डर है कि विस्तृत चर्चा हुई तो उसके मुख्यमंत्रियों की भी कलई खुल जाएगी? कहीं ऐसा तो नहीं कि मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी एकता का दम भर रहे नेता डर रहे हैं कि बिंदुवार चर्चाओं से यह कथित एकता तार-तार हो जाएगी? यदि ऐसा है तो यहां यह बताना उचित होगा कि विपक्ष की एकता का दावा कितना खोखला है यह आए दिन वैसे भी उजागर हो ही रहा है। जब कांग्रेस बैठक बुलाती है तो तृणमूल के सांसद गायब रहते हैं और जब तृणमूल के नेता क्षेत्रीय दलों से मिलते हैं तो कांग्रेस कन्नी काट लेती है। वास्तविकता यह है कि कोरोना के संकट काल में "संकट के समाधान का हिस्सा" बनने के बजाय कांग्रेस सहित कुछ विपक्षी दल "सियासी व्यवधान का किस्सा" गढ़ते रहे।
(2)एकजुट होकर इस महामारी से लड़ने के बजाय, सरकार का काम डीरेल करने के लिए भयंकर बीमारी के बीच संसद का विशेष सत्र बुलाने का शिगूफा छेड़ने वाले, अब संसद में एक ऐसे हवा हवाई मुद्दे पर काम ठप्प किए बैठे हैं जिस पर न तो आम भारतीय का कोई ध्यान है और न ही दिलचस्पी। इससे पहले भी जनता के मूड को समझे बगैर इधर-उधर के मुद्दों पर बवाल करने की कीमत विपक्ष चुका रहा है। इस बार भी उसका यही हश्र होगा, यह तय है।सरकार बार-बार यह स्पष्ट कर चुकी है कि वह दोनों सदनों के नियमों, प्रावधानों एवं चेयरमैन एवं स्पीकर साहब के दिशा-निर्देशों के तहत कोरोना महामारी, किसान, महंगाई, जल शक्ति जिसमें बाढ़ भी शामिल है, आदि सभी ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा को तैयार है। कथित जासूसी मामले पर भी सरकार ने बिना समय गंवाए संसद में बयान दे दिया है। लेकिन कांग्रेस, विपक्ष का "स्वयंभू चौधरी" बनने की चतुराई में लगी है।कांग्रेस अपनी नकारात्मक सोंच को संपूर्ण विपक्ष का फैसला बताकर उन विपक्षी दलों की सकारात्मक सोंच को भी बंधक बनाना चाहती है जो सदन में चर्चा और कार्य करने के पक्ष में हैं।