"बदले की सनक" नहीं, बल्कि "बेहतरी की सोंच" के साथ काम करना चाहिए।
"पावर के गुरुर, पोस्ट के सुरूर" की राजनीति कभी लम्बी नहीं चलती, हमें लोगों की बेहतरी, बहबूदी के लिए अपने को समर्पित करना चाहिए।
आम लोगों को "तरक्की के सफर का हमसफ़र" बनाना हमारा संकल्प होना चाहिए।
"पावर का गुरुर, पोस्ट का सुरूर" वक़्त के साथ चकनाचूर हो जाता है।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की “इकबाल, इंसाफ, ईमान” की सरकार ने "राजा के रौब की सियासत" को "जनता के रुतबे की संस्कृति" में बदल कर देश के सामने नजीर पेश किया है।
(1) इसी लिए इन "परिवार की परिक्रमा पालिटिक्स के पराक्रमियों" को यह याद रखना चाहिए कि "बदले की सनक" बंटाधार करती है, "बेहतरी की सोंच" उद्धार करती है।
जहाँ कुछ राजनीतिक दलों ने उत्तर प्रदेश में "एम-वाई फैक्टर" को संकीर्ण साम्प्रदायिकता का प्रतीक बना रखा था, वहीँ आज “एम- वाई (मोदी-योगी) फैक्टर” का मतलब समावेशी विकास, सर्वस्पर्शी सशक्तिकरण है।
मोदी-योगी ने "छद्म धर्मनिरपेक्षता और तुष्टीकरण के राजनीतिक छल" को "समावेशी सशक्तिकरण के बल" से ध्वस्त किया है।
तमाम साजिशों के बावजूद हमारी संस्कृति-संस्कार-संविधान ने "अनेकता में एकता" की डोर को कमजोर नहीं होने दिया। समावेशी विकास के रास्ते में बाधाएँ आई भी तो हमारी इसी ताकत ने देश को रुकने नहीं दिया।
(2) मोदी सरकार ने पिछले साढ़े आठ वर्षों में 12 करोड़ से अधिक किसानों को "किसान सम्मान निधि" का लाभ दिया;
"मुद्रा योजना" के तहत 37 करोड़ 31 लाख से ज्यादा लोगों को स्वरोजगार एवं अन्य आर्थिक गतिविधियों के लिए आसान ऋण दिए हैं;
47 करोड़ से अधिक जरूरतमंदों को "जन धन योजना" के तहत अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा से जोड़ा है;
2 करोड़ 70 लाख गरीबों को पक्के मकान दिए हैं;
9 करोड़ 50 लाख से अधिक गरीब महिलाओं को "उज्ज्वला योजना" के तहत निशुल्क गैस कनेक्शन दिए हैं;
"आयुष्मान भारत" के तहत 3 करोड़ 62 लाख से अधिक लोगों को निशुल्क चिकित्सा सेवा मुहैया कराई है,
देश भर में 11 करोड़ 65 लाख से अधिक शौचालय बनाये हैं। इन सभी योजनाओं के लाभार्थियों में 22 से 35 प्रतिशत अल्पसंख्यक वर्ग के जरूरतमंद शामिल हैं।
इन सभी प्रभावी परिणामों से हर जरूरतमंद की आँखों में खुशी और जिंदगी में खुशहाली सुनिश्चित हुई है।