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  • "नोटबंदी" और काले धन के खिलाफ प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के मिशन के खिलाफ कांग्रेस का "पोलिटिकल पाखंड" कालेधन के कुबेरों की कंगाली पर कोताहल साबित हो रहा है। इस “पालिटिकल पाखण्ड का पार्टनर” बन रहे कुछ राजनैतिक दल जाने-अनजाने में देश के मूड-माहौल के विपरीत आचरण कर रहे हैं, कांग्रेस के "सियासी शतरंज" का मोहरा बन रहे हैं।

    आज पूरा देश, समाज का हर तबका भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ निर्णायक लडाई में प्रधानमंत्री श्री मोदी के साथ है। यह एक ऐसी लडाई है जिसका देश पिछले लगभग सात दशकों से इन्तजार कर रहा था। भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ जेहाद और जंग, सड़कों पर नारा, राजनैतिक दलों का भाषण और चुनावी घोषणा पत्रों का हिस्सा तो हमेशा रहा है लेकिन यह हकी़कत में कभी नही बदला। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने इसे हकीकत में बदला, अमली जामा पहना कर दिखाया।

    ऐसा नही है कि इससे पहले किसी एक राजनैतिक पार्टी को भ्रष्टाचार-काले धन से लड़ने का पूर्ण बहुमत ना मिला हो, या किसी राजनैतिक दल ने कालेधन और भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था बनाने का वादा ना किया हो, पर सत्ता में आने के बाद करप्शन-कालाधन के खात्मे के बजाय ज्यादातर सरकारें खुद “करप्शन के दलदल”में फंसती गई ।

    प्रधानमंत्री श्री मोदी ने अपनी पहली कैबिनेट बैठक में कालेधन के खात्मे के लिए एस0आई0टी0 के गठन के साथ संदेश दे दिया था कि उनकी सरकार की प्राथमिकता “भ्रष्टाचार मुक्त-विकास युक्त”व्यवस्था है। मोदी सरकार को घोटालों, भ्रष्टाचार, जन-धन की खुली लूट की कांग्रेस सरकार की विरासत मिली थी। इस बदनाम विरासत पर सियासत किये बिना मोदी सरकार ने साबित किया कि अगर नेतृत्व की ईमानदार इच्छाशक्ति हो तो वह सरकार ही नहीं व्यवस्था भी बदल सकता है।

    कांग्रेस पार्टी ’’गरीबी हटाओ-भ्रष्टाचार मिटाओं” का नारा देकर ग्यारह बार केन्द्र की सत्ता पर काबिज हुई पर कभी भी ईमानदार इच्छा शक्ति के साथ देश के गरीबों, कमजोर तबकों के सशक्तिकरण और भ्रष्टाचार की बीमारी से नही लड़ी बल्कि उसका समय-समय पर “संरक्षण”करती दिखी। कभी बोफोर्स घोटाला, कभी 2-जी घोटाला, कभी कामनवेल्थ खेल घोटाला, कभी कोयला घोटाला, कभी चापर घोटाला, टाटरा ट्रक घोटाला, आर्दश घोटाला, कभी तेलगी स्कैम, तो कभी टेलीकाम घोटाला तो कभी आयल फार फूड घोटाला, तो कभी नागरवाला स्कैण्डल, ऐसा लगने लगा जैसे "कांग्रेस और करप्शन का चोली दामन का साथ हो गया है"।

    संसद का शीतकालीन सत्र जो 16 नवम्बर से शुरू हुआ, भी कांग्रेस के देश के प्रोग्रेस पर पलीता लगाने के "पोलिटिकल पाखंड" के चलते बाधित हो रहा है। 16 नवम्बर को एक वर्तमान सदस्य के स्वर्गवास के चलते लोकसभा बन्द हो गई। 
    राज्यसभा में लगभग सभी विपक्षी दलों ने सरकार के 8 नवम्बर के काले धन के खिलाफ उठाए गये कदम पर चर्चा की मांग की, हमने तत्काल चर्चा स्वीकार कर ली और कहा कि विपक्ष जितने घण्टे, जितने दिन चाहे, चर्चा के लिए सरकार तैयार है और चर्चा शुरू हो गई। श्री आनन्द शर्मा, श्री सीताराम येंचूरी, सुश्री मायावती, श्री राम गोपाल यादव, श्री शरद यादव, श्री पियूष गोयल, श्री एम0 वेकैंय्या नायडू, श्री प्रफुल्ल पटेल, श्री नरेश अग्रवाल, श्री प्रमोद तिवारी सहित 12 संदस्यों ने चर्चा में भाग लिया और दूसरे दिन यानी 17 नवम्बर को पुनः चर्चा जारी रहनी थी पर सुबह कांग्रेस ने विपक्ष की ओर से मांग की, कि सरकार जे0पी0सी0 का ऐलान करे और प्रधानमंत्री सदन में पूरे समय बैठें, तभी चर्चा आगे बढ़ेगी, हमने एवं नेता सदन श्री अरूण जेटली ने कहा कि चर्चा आगे बढ़ाईए आप के हर सवाल का हम जवाब देगें, पर कांग्रेस नही मानी और पूरा दिन हंगामें की भेंट चढ़ गया और लगातार 24 नवम्बर तक यही हंगामा चलता रहा।

    24 नवम्बर को प्रधानमंत्री बारह बजे सदन में आये तो विपक्ष के नेता श्री गुलाब नबी आजाद ने मांग की प्रधानमंत्री आ गये है, इसलिए प्रश्नकाल स्थगित कर हम चर्चा शुरू करना चाहते है, सरकार ने तत्काल विपक्ष की बात मान ली और चर्चा शुरू हो गई, उनकी ओर से पूर्व प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह, सपा से श्री नरेश अग्रवाल, त्रिमूल कांग्रेस श्री डेरेक ओबरायन ने अपनी बात रखी, फिर लन्च के बाद 2 बजें चर्चा आगे होनी थी पर ’’तर्को और तथ्यों के दिवालियेपन” से जूझ रही कांग्रेस ने आगे चर्चा बढ़ाने से मना कर दिया और मांग करने लगें की जे0पी0सी0 बनाओ, प्रधानमंत्री माफी मांगें आदि जैसे बेतुकी और बौखलाहट भरी मांग करने लगे।

    कांग्रेस प्रधानमंत्री से माफी मांगने की मांग कर रही है। हमने उससे पूछा कि प्रधानमंत्री क्यों माफी मांगें? इसलिए कि कालेधन के कुबेर कंगाल हो गये है? या इसलिए कि बेइमानों का बन्टाधार हो रहा है? या इसलिए कि घोटालों के गुरू घंटालों की नाकेबन्दी और लूट लाबी पर तालाबन्दी हो गई है? कांग्रेस और उसके कुछ साथी इस हकीकत को अच्छी तरह जानते है कि प्रधानमंत्री श्री मोदी जो भी कर रहे है, उसका सबसे बड़ा फायदा गरीब, मध्यम वर्ग, कमजोर तबकों को होगा। यह वह तबका है, जो राजनैतिक जमात से उम्मीद छोड़ बैठा था, और उसके मन में घर कर गया था कि देश में सत्ता तो बदलेगी, पर व्यवस्था नही बदलेगी, व्यवस्था में बदलाव उस आखिरी पायदान पर खड़े व्यक्ति के लिए एक बड़ी क्रान्ति है।

    नोटबंदी पर सरकार के निर्णय के खिलाफ कांग्रेस और कुछ अन्य दलों द्वारा 28 नवम्बर को मनाया गया ’’आक्रोश दिवस”और "बंद" बुरी तरह असफल रहा। बैंकों और एटीएम की लाईन में खड़ा आम आदमी कह रहा है कि “कुछ पल के लिए तकलीफ तो हो रही है पर मोदी जी ने बहुत अच्छा कदम उठाया है, हम मोदी जी के साथ हैं”। इसे कहते हैं नेतृत्व के प्रति विश्वास और सरकार की ईमानदारी के प्रति पुख्ता यकीन।

    दरअसल यही है देश का मूड़-माहौल, इस फैसले का विरोध करने वाले ज्यादातर वही राजनैतिक दल है, जिन्हे मोदी जी का प्रधानमंत्री बनना कभी हज़म नही हुआ, उन्होने कभी स्वीकार नही किया कि जनादेश उनके कुशासन-करप्शन के खिलाफ था। मोदी जी के सुशासन को सत्ता के सजावटी शब्दों से बाहर निकाल कर व्यवस्था का हिस्सा बनाने का संकल्प हकीक़त में बदला।

    शीतकालीन सत्र में अब तक अकेले राज्यसभा में लगभग 45 घण्टे बरबाद हो चुके है और लगभग इसी तरह लोकसभा में हंगाम होता रहा। लोकसभा में एक घंटे की कार्यवाही का खर्च लगभग 1.5 करोड़ और राज्यसभा में 1.1 करोड़ आता है, यानी कि अबतक मात्र इसी सत्र में करोड़ों रूपया जनता की गाढ़ी कमाई कांग्रेस और उनके कुछ साथियों के अंहकार और हंगामे के भेंट चढ़ गया। यह लोग तर्को और तथ्यों पर नही, तुक्के और तमाशें के भरोसे देश की इस बड़ी "आर्थिक क्रान्ति" पर पलीता लगाने का पाखण्ड कर रहे हैं।

    कांग्रेस और उसके साथियों को चाहिए कि वह भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ इस जंग में देश का साथ दें। ताकि आखिरी पायदान पर खड़ा हुआ वह व्यक्ति जो काले धन और भ्रष्टाचार के इन काले बादलों के चलते विकास की रौशनी से दशकों से वंचित है उस तक उसका हक़, उसके सशक्तिकरण का संवैधानिक अधिकार पूरा हो सके।